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३.६७
चतुर्थ परिच्छेद निवृत्ति वाला मानोगे। तब तो स्मशान में देह के भस्म होने पर इन न होवे, परन्तु देह के विद्यमान होते हुए मृत अवस्था में किस वास्ते ज्ञान नहीं होता? ___ जेकर कहो कि प्राण, अपान भी ज्ञान के हेतु हैं, तिन के अभाव से ज्ञान नही होता है । यह भी कहना ठीक नहीं। क्योंकि प्राणापान ज्ञान के हेतु नहीं हो सकते हैं, किन्तु ज्ञान ही से तिन की प्रवृत्ति होती है । तथाहि जब प्राणापान का करने वाला मंद इच्छा करता है, तव मंद होता है। अरु जब दीर्घ की इच्छा करता है, तव दीर्घ होता है। जेकर देह मात्र नैमित्तिक प्राणापान होवे, अरु प्राणापान नैमित्तिक विज्ञान होवे, तव तो इच्छा के वश से प्राणापान की प्रवृत्ति न होवेगी। क्योकि जिनका निमित्त देह है, ऐसी जो गौरता
और श्यामता, वो इच्छा के वश से प्रवृत्त नहीं होती हैं । जेकर प्राणापान ज्ञान का निमित्त होवे, तब तो प्राणापान के थोड़े वा बहुते के होने से ज्ञान भी थोड़ा वा बहुत होना चाहिये। क्योंकि जिस का कारण हीन अथवा अधिक होवेगा, उस का कार्य भी हीन अथवा अधिक ज़रूर होवेगा। जैले माटी का पिंड जब बड़ा किंधा छोटा होगा, तब घट भी बड़ा अरु छोटा होवेगा, अन्यथा वो कारण भी नहीं । तुमारे भी तो प्राणापान के न्यून अधिक होने से ज्ञान न्यून अधिक नहीं होता है, किन्तु विपर्यय होता तो दीखता है। क्योंकि मरणावस्था में प्राणापान अधिक भी होते हैं, तो भी विज्ञान घट जाता है।