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जैनतत्त्वादर्श जानेगा । तब तो हमारी तरें तिस ईश्वर को कदापि सर्वज्ञता न होवेगी, क्योंकि सर्व पदार्थों के साथ युगपत् सन्निकर्ष नहीं हो सकता है । जेकर कहोगे कि सर्व पदार्थों को क्रम करके जानने से सर्वज्ञ है, तब तो बहुत काल करके सर्व पदार्थों के देखने से ईश्वर की तरें हम को भी सर्वज्ञ कहना चाहिये । एक और भी बात है, कि अतीत और अनागत जो पदार्थ हैं, सो विनष्ट तथा अनुत्पन्न होने से, उनका मन के साथ सन्निकर्ष नहीं हो सकता है । यदि हो तो पदार्थों का संयोग भी होगा, परन्तु अतीत अनागत पदार्थ तो तिस अवसर में असत् हैं, तव किस तरें महेश्वर का ज्ञान अतीत अनागत अर्थ का ग्राहक हो सकेगा ? अरु तुम तो ईश्वर का ज्ञान सर्वार्थ का ग्राहक मानते हो, तब तो पूर्वापर विरोध सहज ही में हो गया। ऐसे ही योगियों के सर्वार्थ ग्राहक ज्ञान का भी विरोध जान लेना।
११. कार्य द्रव्य के प्रथम उत्पन्न होने से तिस का जो रूप है, सो पीछे से उत्पन्न होता है, क्योंकि विना प्राश्रय के गुण कैसे उत्पन्न होवे । यह कह करके पीछे से यह कहते हैं, कि कार्य द्रव्य के विनाश हुए पीछे तिस का रूप नष्ट होता है । यह पूर्वापर विरोध है, क्योंकि जब कार्यद्रव्य का नाश हो गया, तब रूप आश्रय विना पीछे क्योंकर रह सकेगा?
११. नैयायिक और वैशेषिक जगत् का कर्त्ता ईश्वर को