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चतुर्थ परिच्छेद
३३१ तुल्य ग्राक्षेप समाधान न्याय से समान रूपता का यहां पर भी अंगीकार करना पड़ेगा । इस वास्ते वाष्प अरु धूम इन दोनों में किसी अंश करके साम्य भी है, तो भी कोई एक ऐसा विशेष है, जिससे कि धूम ही अग्रि का गमक है, बाप्पादिक नहीं | तैसे ही पृथिव्यादिकों में भी इतर कार्यों की अपेक्षा कुछ विशेष ही अंगीकार करना होगा ।
जेकर दूसरा पक्ष मानोगे, तब तो पक्ष में कार्य विशेष के प्रभाव से यह हेतु प्रसिद्ध है । यदि मान लें, तो जीर्ण कूप प्रासादादिकों की तरे अक्रिया देखने वाले को भी कृतवुद्धि की उत्पादकता का प्रसङ्ग होगा । जेकर कहो कि समारोप से प्रसंग नहीं होता है, तो भी दोनों जगे एक सरीखा होने से क्यों नहीं होता है ? क्योंकि दोनों जगे कर्त्ता का अतीन्द्रियत्व समान है, यदि कहो कि प्रामाणिक, को यहां कृतबुद्धि है । तो तहां तिस को कृतकत्व का अवगम, क्या इस अनुमान करके अथवा अनुमानांतर करके है ? आद्य पक्ष में परस्पर प्रश्रय दूपण है, तथाहि - सिद्धविशेपण हेतु से इस अनुमान का उत्थान है, परन्तु तिस के उत्थान होने पर हेतु के विशेषण की सिद्धि है । दूसरे पक्ष में अनुमानांतर का भी सविशेषण हेतु से ही उत्थान होवेगा, तहां भी अनुमानांतर से इस की सिद्धि करोगे, तो अनवस्था दूपण आवेगा । इस वास्ते कृतबुद्धि उत्पादकत्व रूप विशेषण सिद्ध नहीं । तव यह विशेषणासिद्ध हेतु है !
अरु जो कहते हैं कि खात प्रतिपूरित पृथिवी के दृष्टान्त