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जैनतत्त्वादर्श कार्य रूप कैसे माना जा सकता है?
प्रतिवादी: इस जगत के अंतर्गत तृणादिकों में कार्यत्व होने से यह जगत् भी कार्यरूप है।
सिद्धान्ती तव तो महेश्वर के अन्तर्गत बुद्धि प्रादिकों को, तथा परमाणु आदि के अंतर्गत पाकज रूपादिकों को कार्य रूप होने से, महेश्वर तथा परमाणु आदि को कार्यत्व का अनुषंग होवेगा । और इस ईश्वर के अपर बुद्धिमान् कर्ता की कल्पना करने पर अनवस्था दूषण तथा अपसिद्धान्त का प्रसङ्ग होगा । अस्तु, किसी प्रकार से जगत् को कार्य भी मान लिया जावे, तो भी यहां पर क्या कार्यमात्र को तुमने हेतु माना है ? वा कार्य विशेष को हेतु रूप से स्वीकार किया है ? जेकर प्राद्य पक्ष मानोगे, तब तो उस से बुद्धिमान कर्ता विशेष सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि तिस के साथ हेतु की व्याप्ति सिद्ध नहीं है। किन्तु कर्तृ सामान्य की सिद्धि होती है । जेकर ऐसे ही मानोगे, तब तो यह हेतु अकिचिकर है । और साध्य से विरुद्ध के साधने से हेतु विरुद्ध भी है । इस वास्ते कृतबुद्धि उत्पादक रूप जो कार्यत्व है, सो बुद्धिमान् कर्त्ता विशेष का गमक नहीं हो सकता। जेकर समान रूप होने से कार्यत्व को गमक मान लें, तब तो बाष्पादि को भी अग्नि के गमकत्व का प्रसंग होवेगा। तथा महेश्वर को आत्मत्व रूप से सर्व जीवों के सदृश होने से संसारित्व और अल्पज्ञत्व आदि का प्रसङ्ग भी हो जावेगा।