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जैनतत्त्वादर्श वा प्रागसत् का स्वकारण सत्ता समवाय है ? वा 'कृतं' ऐसे प्रत्यय का विषय है ? वा विकारित्व ही कार्यत्व है ? इन चारों विकल्पों में से कार्यत्व हेतु का कौन सा स्वरूप है ? जेकर कहो कि उस का सावयवत्व स्वरूप है, तो यह सावयवपना अवयवों के विषे वर्तमानत्व है ? वा अवयवों करके प्रारभ्यमाणत्व है ? वा प्रदेशवत्व है ? अथ 'सावयत्र' ऐसी बुद्धि का विषय है ?
तहां प्राद्य पक्ष विषे अवयव सामान्य करके यह हेतु अनेकांतिक है, क्योंकि अवयवों के विषे वर्तमान अवयवत्व को भी निरवय और अकार्य कहते हैं। तथा दूसरे पक्ष में यह हेतु साध्य के समान सिद्ध होता है। जैसे पृथिव्यादिकों में कार्यत्व साध्य है, वैसे हो परमाणु आदि अवयवारभ्यत्व साध्य है । तथा तीसरे पक्ष में आकाश के साथ हेतु अनेकांतिक है, क्योंकि आकाश प्रदेश वाला तो है, परन्तु कार्य नहीं है । तथा चौथे पक्ष में भी आकाश के साथ हेतु व्यभिचारी है, क्योंकि जो व्यापक होता है, सो निरवयव नहीं होता है, अरु जो निरवयव होता है, सो परमाणुवत् व्यापक नहीं होता है। ' तथा प्रागसत का स्वकारण में जो सत्तासमवाय तद्रूप भी कार्यत्व नहीं, क्योंकि वह नित्य है । यदि कार्यत्व का ऐसा ही स्वरूप मानोगे, तव तो पृथिव्यादिकों के कार्यत्व को भी