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जैनतत्त्वादर्श करके कृतकों को प्रात्मविषे कृतबुद्धि उत्पादकत्व का अभाव है, सो भी असत् है। क्योंकि यहां तो इस को अकृत्रिम भूमि के समान समतल होने से, तथा वहां पर उत्पादक के दृष्टिगोचर न होने से, कदाचित् अनुत्पादकत्व की उपपत्ति हो सकती है, अर्थात् देखने वाले में कृतबुद्धि को उत्पन्न नहीं करती। परन्तु पृथिवी आदि के वास्ते तो ऐसी कोई भी अकृत्रिम वस्तु नहीं है, कि जिस की समानता से इस में भी खात पूरित भूमि की तरह अकृत्रिम बुद्धि उत्पन्न हो सके।
यदि कहो कि पृथिव्यादिकों में भी अकृत्रिम संस्थान सारूप्य है, जिस से कि अकृतिमत्व बुद्धि उत्पन्न होती है, तब तो अपसिद्धांत की प्रसक्ति होवेगी । अतः कृतबुद्धि उत्पादकत्व रूप विशेषण को प्रसिद्ध होने से यह हेतु विशेषणासिद्ध है । कदाचित् सिद्ध भी हो, तो भी यहां घटादिकों की तरे शरीरादि विशिष्ट बुद्धिमान् कर्ता ही का साधक होने से यह हेतु विरुद्ध है।
प्रतिवादी:-इस प्रकार के दृष्टांत दातिक के साम्य अन्वेषण में तो सर्व जगे हेतुओं की अनुपपत्ति ही होवेगी ?
सिद्धांती:-ऐसे नहीं है, क्योंकि धूमादि अनुमान में महानस तथा इतर साधारण अग्नि की प्रतिपत्ति होती है। तव तो यहां पर भी बुद्धिमत् सामान्य की प्रसिद्धि से हेतु में विरोध नहीं मानना चाहिये, ऐसे कहना भी प्रयुक्त