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चतुर्थ परिच्छेद
રૂ૨૭ प्रतिवादीः-सुगतादिक ईश्वर मत हों, परन्तु सृष्टि का कर्ता तो ईश्वर है, उस को आप क्यों नहीं मानते?
सिद्धान्तोः-जगत् कर्ता ईश्वर की सिद्धि में प्रमाण का अभाव है, इस वास्ते नहीं मानते। प्रतिवादीः-जगतकर्ता की सिद्धि में अनुमान प्रमाण
है, यथा-पृथिव्यादिक किसी बुद्धिमान के ईश्वर कर्तृत्व रचे हुए हैं, कार्यरूप होने से, घटादि की तरे। का खण्डन यह हेतु असिद्ध भी नहीं है, पृथिव्यादिकों के
सावयव होने से उन में कार्यत्व प्रसिद्ध है। तथाहि-पृथिवी, पर्वत, वृक्षादिक सर्व सावयव होने से घटवत् कार्यरूप हैं । अरु यह हेतु विरुद्ध भी नहीं है, क्योंकि निश्चितकर्तृक घटादिकों में कार्यत्व हेतु प्रत्यक्ष देखने में आता है । तथा जिन आकाशादि का कोई कर्ता नहीं है, उन से व्यावृत्त होने से यह कार्यत्व अनेकांतिक भी नहीं है । एवं प्रत्यक्ष तथा प्रागम करके अबाधित विषय होने से, यह कालात्ययापदिष्ट भी नहीं है । अतः इस निर्दोष हेतु से जगत् कर्ता ईश्वर सिद्ध होता है । ___ सिद्धान्तीः-यहां प्रथम, पृथिवी आदिक किसी बुद्धिमान के बनाये हुए हैं, इस की सिद्धि के वास्ते जो तुमने कार्यत्व हेतु कहा था, सो कार्यत्व क्या सावयवत्व को कहते हो?