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चतुर्थ परिच्छेद अनर्थजन्य होने करके स्मृति को जव अप्रमाण माना, तव अतोतानागत अनुमान भी अनर्थजन्य होने करके प्रमाण न हुशा । अरु अनुमान को शब्द की तरें त्रिकाल विषयक मानते हैं। यथा-धूम करके वर्तमान अग्नि अनुमेय है । अरु मेघोन्नति करके भविष्यत् वृष्टि, अरु नदी का पूर देखने से अतीत वृष्टि का अनुमान मानते हैं । तो फिर धारावाही ज्ञान, अरु अनर्थजन्य अनुमान, इन दोनों को तो प्रमाण मानना अरु स्मृति को प्रमाण नहीं मानना, यह पूर्वारर विरोध है।
१०-ईश्वर का सर्वार्थ विषय प्रत्यक्ष जो है, सो इन्द्रियार्थसनिकर्म निरपेक्ष मानते हो ? वा इन्द्रियार्थसन्निकर्पोत्पन्न मानते हो ? जेकर कहोगे कि इन्द्रियार्थसन्निकर्ष निरपेक्ष मानते हैं, तब तो"इन्द्रियार्थसन्निकर्पोत्पन्नं ज्ञानमव्यपदेश्यम्"--
[न्या० द०, अ० १ प्रा० १ सू०४] इस सूत्र में सन्निकर्पोपादान निरर्थक होवेगा, क्योंकि ईश्वर का प्रत्यक्ष जान सन्निकर्ष के विना भी हो सकता है। जेकर कहोगे कि ईश्वर प्रत्यक्ष इन्द्रियार्थसन्निकर्षीत्पन्न मानते हैं, तब तो ईश्वर के मन का, अणुमात्र प्रमाण होने से युगपत सर्व पदार्थों के साथ संयोग न होवेगा । तवतो ईश्वर जब एक पदार्थ को जानेगा, तब दूसरे पदार्थ होते हुओं को भी नहीं