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चतुर्थ परिच्छेद
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पूर्वापर व्याहतपना दिखलाते हैं । प्रथम बौद्ध में पूर्वापर विरोध का उद्भावन करते हैं:
९. प्रथम तो बौद्ध मत में सर्व पदार्थों को क्षणभंगुर कहाँ और पीछे से ऐसे कहा है- "नाननुकृतान्ययव्यतिरेकं कारणं नाकारणं विषय इति" अर्थात् अर्थ के होते ही ज्ञान उत्पन्न होता है, अर्थ के बिना नहीं होता, इस प्रकार अनुकृत अन्वयव्यतिरेक वाला अर्थ ज्ञान का कारण है। तथा जिस अर्थ से 'यह ज्ञान उत्पन्न होती है, तिस कारण रूप अर्थ हो को विषय करता है । इस कहने से अर्थ दो क्षण स्थितिवाला कहा गया । जैसे कि अर्थ रूप कारण से ज्ञान रूप कार्य जो उत्पन्न होता है, वह दूसरे क्षण में उत्पन्न होगा। क्योंकि एक ही समय में कारण और कार्य उत्पन्न नहीं होते हैं । तथा वह ज्ञान अपने जनक अर्थ हो को ग्रहण करता है । " नापरं नाकारणं विषय इति वचनात् " । जब ऐसे हुआ तब तो अर्थ दो समय की स्थिति वाला बलात् हो गया, परन्तु- - बौद्ध मत में दो समय की स्थिति वाला कोई पदार्थ है नहीं ।
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बौद्धमत में पूर्व
पर विरोध
२. तथा “नाकारणं विषय इत्युक्त्वा" अर्थात् जो पदार्थ
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ज्ञान की उत्पत्ति में कारण नहीं है, उस पदार्थ को ज्ञान विषय भी नहीं करता । ऐसे कह कर फिर योगी प्रत्यक्ष