________________
३१७
चतुर्थ परिच्छेद है, तब तो कार्य उत्पत्ति काल में भी सत् होगा, और कार्य कारण को समकालता का प्रसंग होगा। परन्तु एक काल में दो पदार्थों का कार्य कारण भाव माना नहीं है, अन्यथा माता पुत्र का व्यवहार न होवेगा, तथा घट पटादिकों में भी परस्पर कार्य कारण भाव का प्रसंग हो जावेगा। जेकर असत् पक्ष मानोगे, तो वो भी अयुक्त है, क्योंकि जो असत है, सो कार्य नहीं हो सकता है, अन्यथा खरभंग भी कार्य होना चाहिये, तथा अत्यंनाभाव और प्रध्वंसाभाव, इन दोनों में कोई विशेषता न होगी, क्योंकि दोनों ही जगे वस्तु सत्ता का अभाव है।
एक और भी बात है, कि "तद्भावे भावः" ऐसे अवगमप्रतीति में कार्य कारण भाव का अवगम है। परन्तु जो तद्भाव में भाव है, सो क्या प्रत्यक्ष से प्रतीत होता है ? वा अनुमान करके प्रतीत होता है ? प्रत्यक्ष से तो नहीं, क्योंकि पूर्व वस्तुगत प्रत्यक्ष से पूर्ववस्तु परिच्छिन्न है । और उत्तर वस्तुगत प्रत्यक्ष करके उत्तर वस्तु परिच्छेद्य है, परन्तु ये दोनों ही परस्पर के स्वरूप को नहीं जानटे, और इन दोनों का अनुसंधान करने वाला ऐसा कोई तीसरा स्वरूप तुम मानते नहीं हो । इस वास्ते इस के अनंतर इस का भाव है, ऐसे किस तरे अवगम होवेगा ? तथा अनुमान जो है, सो लिग लिगी के संबन्ध ग्रहण पूर्वक ही प्रवृत्त होता है। परन्तु लिग लिगो का. सम्बन्ध प्रत्यक्ष