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जैनतत्त्वादर्श
उवगरणदेहचुक्खा, रिद्धीजसगारवासिया निच्चं । बहुसबलछेयेजुत्ता, निग्गंथा बाउसा भणिया ॥ आभोगे जाणतो, करेइ दोसं जाणमण भोगे । मूलुत्तरेहिं संवुड, विवरीय असंबुडो होइ ॥ अच्छिमुहमज्जामाणो, होइ अहासुहुमओ तहा बउसो ।
[ पं० नि०, गा० २०-२२ ]
अर्थः- उपकरण, देह शुद्ध रक्खे, ऋद्धि, यश, साता, इन तीनों गारव के नित्य आश्रित होवे, उपकरणों से अविविक्त रहे, जिस का परिवार छेद योग्य रावल चारित्र संयुक्त हो उस को बकुरा निग्रंथ कहते हैं । साधुओं के यह काम करने योग्य नहीं, ऐसे जानता हुआ भी जो उस काम को करता है, सो प्राभोग बकुश अरु जो अनजानपने से करे, सो प्रनाभोग बकुश, 'मूलोत्तर गुणों में जो गुप्त दोष लगावे सो संवृत बकुश, अरु जो प्रगट रूप से दोष लगावे, सो असंवृत बकुरा, तथा जो बिना प्रयोजन तथा विना मल के आंख, मुखादि को धोता रहे सो सूक्ष्म बकुश कहलाता है ।
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अथ कुशल निर्बंथ का स्वरूप लिखते हैं :सीलं चरणं तं जस्स, कुच्छियं सो इह कुसीलो ॥ 'पडि सेवा कसाए, दुहा कुसीलो दुहावि पंचविहो । नाणे दंसण चरणे, तवे य अह सुहुमए चेव ॥
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