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રપૂક
जैनतत्त्वादर्श के पिड से घट उत्पन्न होता है । तो फिर हमारे कहने में क्या प्रयुक्तता है ? अरु जो माटी का पिंड है सो तुच्छरूप नहीं है, क्योंकि वो अपने स्वरूप करके विद्यमान है । तो फिर प्रभाव पदार्थ की उत्पत्ति में हेतु क्यों नहीं हो सकता?'
सिद्धान्तीः-यह भी तुमारा पक्ष असमीचीन है । क्योंकि जो माटी के पिड का स्वरूप है, सो भावाभाव का आपस में विरोध होने से अभावरूप नहीं हो सकता, जेकर भावरूप है, तो अभाव कैसे हुआ ? जेकर अभाव रूप है, तो भाव. कैसे हुआ ? जेकर कहोगे कि स्वरूप की अपेक्षा भावरूप, अरु पररूप की अपेक्षा प्रभावरूप है, तिस वास्ते भावाभाव दोनों के न्यारे निमित्त होनेसे कुछ भी दूषण नहीं । इस कहने से तो माटी का पिंड भावाभावरूप होने से अनेकांतात्मक स्वरूप होगा । परन्तु यह अनेकांतात्मपना जैनों के ही मत में स्वीकृत है, क्योंकि जैन मत वाले ही सर्व वस्तु को स्वपरभावादि स्वरूप करके अनेकांतात्मक मानते हैं । परन्तु तुमारे मत में इस सिद्धान्त को अंगीकार किया नहीं है । जेकर कहोगे कि मृत्पिड में जो पररूप का अभाव है, सो तो कल्पित है, अरु जो भावरूप है, सो तात्त्विक है, इस बास्ते अनेकांतात्मक वाद को हम को शरण नहीं लेनी पड़ती। तो फिर तिस मृत्पिड से घट कैसे होवेगा? क्योंकि मृत्पिड में परमार्थ से घट के प्रागभाव का प्रभाव हैं। जेकर प्रागभाव के विना भी मृत्पिड़ से घट हो जावे, तो फिर सूत्र