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जैनतत्त्वादर्श यह जैमिनी षट् प्रमाण मानता है, १. प्रत्यक्ष, २. अनुमान, ३. शब्द, ४. उपमान, ५ अर्थापत्ति, और ६. अभाव । इन का विस्तार षड्दर्शनसमुच्चय की बड़ी टीका से जान लेना ।
यह पांच दर्शन आस्तिक कहे जाते हैं, छठा जैन दर्शन है, तिस का स्वरूप अगले परिच्छेद में लिखा जायगा । तथा नास्तिक जो है, सो दर्शन में नहीं, “नास्तिकं तु न दर्शनमिति राजशेखरसूरिकृतषड्दर्शनसमुच्चयवचनात् ।” तो भी भव्य जीवों के जानने वास्ते कछुक स्वरूप लिखते हैं। कपाली, भस्म लगाने वाले, योगी, ब्राह्मण से ले कर
अन्त्यज पर्यन्त कितनेक नास्तिक हैं । तिन चावीक मत के मत को लोकायत और चार्वाक कहते का स्वरूप हैं। ये जीव, परलोक और पुण्य पापादि
कुछ नहीं मानते । चारभौतिक देह को हो प्रात्मा मानते हैं, तथा सर्व जगत् चार भूतों से ही उत्पन्न हुआ मानते हैं । और पांचवें भूत आकाश को भी मानते हैं। इन के मत में पंच भूतात्मक जगत् है । इन के मत में पृथिवी
आदि भूतों सेती ही, मद्यशक्ति की तरे चैतन्य उत्पन्न होता है । पानी के वुलवुले की तरे जो शरीर है, वही जीव-प्रात्मा है। इस मत वाले मद्य मांस खाते हैं, तथा माता, बहिन, बेटी मादिक जो अगम्य हैं, तिन से भी गमन कर लेते हैं । वे, नास्तिक प्रति वर्ष एक दिन सर्व एक जगे में एकठे होते हैं, स्त्रियों से विषय सेवन करते हैं । ये नास्तिक, काम से
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