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जैनतत्त्वादर्श
* अतींद्रियाणामर्थानां साक्षाद्द्ष्टा न विद्यते ।
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वचनेन हि नित्येन यः पश्यति स पश्यति ||
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प्रश्न - अपौरुषेय वेदों का अर्थ कैसे जाना जावे ? उत्तरः --- हमारी जो अव्यवच्छिन्न अनादि परंपरा है, तिस से जाना जाता है । अतः प्रथम वेदों का ही पाठ प्रयत्न से करना चाहिये । वेद चार हैं-ऋग्, यजुष, साम, अथर्व । इन चारों का पाठ करने के अनन्तर धर्म को जिज्ञासा करनी चाहिये | धर्म जो है, सो अतींद्रिय है । वह कैसा है ? उस को किस प्रमाण से जानें ? ऐसी जो जानने की इच्छा है, तिस का नाम जिज्ञासा है । साधनी है-धर्म साधने का उपाय है । इस का निमित्त
वो जिarer धर्म
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नोदना - वेद वचन -कृत प्रेरणा है । तिस के निमित्त दो हैं । एक जनक, दूसरा ग्राहक | यहां पर ग्राहक ही निमित्त जानना चाहिये । इस का विशेष स्वरूप कहते हैं:
श्रेय साधक कार्यों में जिस के द्वारा जीवों को प्रवृत्त किया जावे, सो नोदना - वेद वचनकृत प्रेरणा है । धर्म जो है, सो नोदना करके जाना जाता है । इस वास्ते नोदना लक्षण धर्म है । उस का ज्ञान अतींद्रिय होने करके नोदना ही से हो सकता है । किसी प्रत्यक्षादिक प्रमाण से नहीं,
* अतीन्द्रिय पदार्थों को प्रत्यक्ष रूप से देखने वाला, इस संसार में कोई नहीं है । अतः नित्य वेदवाक्यों से जो देखता है, वही देखता है ।