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રહદ
चतुर्थ परिच्छेद था, कि मूंगों में पकने का स्वभाव है, कोकडु में नहीं, इत्यादि । सो भी कारणगत स्वभाव का अंगीकार कर लेने से समीचीन हो जाता है । जैसे एक कोकडु मूंग स्वकारण वशसे नैसे रूप वाले हुए हैं, कि हांडी, ईधन, कालादि सामग्री का संयोग भी है, तो भी नहीं पकते । तथा स्वभाव जो है सो कारण से अभिन्न है । इस वास्ते सर्व वस्तु सकारण ही हैं, यह सिद्ध पक्ष है। अथ अक्रियावादियों में जो यदृच्छावादी हैं, तिनों ने
कहा था, कि वस्तुओं का नियत कार्यकारणयदृच्छा-वाद भाव नहीं है, इत्यादि । सो उन का यह का खण्डन कहना भी कार्यकारण के विवेचन करन वाली
बुद्धि से रहित होने का सूचक है । क्योंकि कार्य कारण का आपस में प्रतिनियत सम्बन्ध है। तथाहिशालूक से जो शालूक उत्पन्न होता है, सो वह सदा शालूक ही से उत्पन्न होगा, परन्तु गोबर से नहीं। अरु जो गोबर से शालूक उत्पन्न होता है, वह सदा गोवर ही से उत्पन्न होगा, परन्तु शालूक से नहीं । अरु इन दोनों शालूकों की शक्ति, वर्णादि की विचित्रता से और परस्पर जात्यंतर होने से एकरूपता भी नहीं हैं, तथा जो अग्नि से अग्नि उत्पन्न होती है, सो भी सदैव अग्नि ही से उत्पन्न होगी, परन्तु अरणी के काष्ठ से नहीं । अरु जो अरणी के काष्ठ से अग्नि. उत्पन्न होती है, सो सदा अरणी के काष्ठ से ही