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जैनतत्त्वादर्श लोक में वे जीव न समा सकेंगे । इति"गलनकविचारों मीमांसायाम ]
यह सांख्य भी एक प्राचीन, अरु एक नवीने ऐसे दो तरे के हैं । नवीनों का दूसरा नाम पातंजल. .भी: कहते हैं । इन में प्राचीन सांख्य, ईश्वर को नहीं मानते हैं, अरु नवीन सांख्य ईश्वर को मानते हैं । जो 'निरीश्वर हैं, उन का नारायण देव है, अरु-उन के जो-प्राचार्य हैं, सो विष्णु प्रतिष्ठाकारक तथा चैतन्य प्रमुख शब्दों करके कहे जाते हैं । अरु सांख्य मत के प्राचार्य कपिल, आसुरी, पंचशिख, भार्गव, उलूक, और ईश्वरकृष्ण प्रभृति. हैं । सांख्यमत वालों को. कांपिल भी कहते हैं । तथा कपिल का परमर्षि ऐसा दूसरा भों नाम है । इस वास्तै तिन को पारमर्ष कहते हैं। वारा:णसी (बनारस ) में ये बहुत होते हैं। तथा एक मास का : उपवास करने वाले बहुत से ब्राह्मण अचिमार्ग से विरुद्ध धूममार्ग के अनुगामी, है.. 1. परन्तु सांख्यमतानुयायी-तोअर्चिमार्ग का ही अवलम्बन करते हैं । इस वास्ते ब्राह्मण जो हैं सो वेदप्रिय होने से यज्ञमार्ग:के, अनुगामी हैं, और सांख्यमत वाले जो हैं, सो हिसायुक्त वेद से- पराङमुख होते हुए अध्यात्म मार्ग का अनुसरण करते हैं। अपने मत की महिमा ऐसी मानते है:- "हस पिव च दि मोद,
नित्यं भुक्ष्व च भोगान् यथाऽभिकामम् ।