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जैनतत्त्वादर्श
अनन्त हैं । क्योंकि जन्म मरण की व्यवस्था और धर्माधर्म विषयक भिन्न प्रवृत्ति से यह बात सिद्ध है । वे सर्व आत्मा व्यापक अरु नित्य हैं ।
*मूचेतनो भोगी, नित्यः सर्वगतोऽक्रियः । अकर्त्ता निर्गुणः सूक्ष्म आत्मा कापिलदर्शने ||
सांख्यमत में प्रमाण तीन माने हैं - १. प्रत्यक्ष, २. अनु. मान, ३. शब्द । इस मत को सांख्य वा शांख्य इस वास्ते कहते हैं, कि संख्या- प्रकृति आदि पच्चीस तत्त्र रूप, तिन को जो जाने, वा पढ़े, सो सांख्य । तथा जेकर तालवी शकार से बोलें, तव इन के मत में शंख की ध्वनि होती है। ऐसी वृद्धों की ग्राम्नाय होने से यह नाम है । तथा शंख नाम का कोई आद्य पुरुष हुआ है, उस की संतान-परंपरा में होने वालों का दर्शन शांख्य या शांख है ।
अथ मीमांसक का मत लिखते हैं। इस का दूसरा नाम जैमिनीय भी कहते हैं । इस मत वाले सांख्यमत की तरे एक दण्डी, त्रिदण्डी होते हैं । धातु रक्त वस्त्र पहिरते हैं, मृगचर्म के प्रासन पर बैठते हैं, कमण्डल पास रखते हैं, शिर मुराडा कर रखते है, ऐसे संन्यासी प्रमुख द्विज इस मत में * कपिल दर्शन में आत्मा को अमूर्त, चेतन, भोक्ता, नित्य, सर्वगत, क्रियारहित, कर्ता, निर्गुण और सूक्ष्म माना है ।
मीमासा मत
का स्वरूप