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जैन तत्त्वादर्श
द्विज ही चार प्रकार के हैं - १. कुटीचर, २. बहूदक, ३. हंस, ४. परमहंस, तिन में १ - त्रिदण्डी, सशिख ब्रह्मसूत्री, गृहत्यागी, यजमानपरिग्रही, एक वार पुत्र के घर में भोजन करके, कुटी में वसने वाले को कुटीचर कहते हैं । २. कुटीचर के समान वेष रखने वाला, विप्र के घर में नीरस भिक्षा करने वाला, विष्णुजाप करने वाला और नदी के तीर पर रहने वाला जो हो, तिस को बहूदक कहते हैं । ३. जो ब्रह्मसूत्र, शिखा करके रहित, कषाय वस्त्र और दंडधारी, ग्राम में एक रात्रि अरु नगर में तीन रात्रि रहता है, धूम रहित जब अग्नि हो जावे, तब ब्राह्मण के घर में भोजन करता है, तप करके शोषित शरीर, देश विदेश में फिरता रहता है, तिसको हंस कहते हैं। हंस को जब ज्ञान हो जाता है, तब वह चारों वर्णो के घर में भोजन कर लेता है, अपनी इच्छा से दण्ड रखता है, ईशान दिशा के सम्मुख जाता है; जेकर शक्ति हीन हो जावे, तव अनशन ग्रहण करता है । ४ जो एक मात्र वेदान्त का स्वाध्यायी हो, तिस को परमहंस कहते हैं । इन चारों में उत्तरोतर श्रेष्ठ हैं । तथा ये चारों ही केवल ब्रह्माद्वैतवाद के पक्षपाती होते हैं ।
अव पूर्वमीमांसावादियों का मत विशेष करके लिखते हैं । जैमिनी मत वाले कहते हैं, कि सर्वज्ञ, सर्वज्ञ चर्चा सर्वदर्शी, वीतराग, सृष्टि आदि का कर्त्ता, इन पूर्वोक्त विशेषणों वाला कोई भी देव नहीं है,