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जैनतत्त्वादर्शतिस प्रकृति से बुद्धि उत्पन्न होती है । पुरोवती गौ
आदि के दीखने से, यह गौ ही है, घोड़ा नहीं, पच्चीस तत्वों, तथा यह स्थाणु ही है, पुरुष नहीं, ऐसा का स्वरूप निश्चयरूप जो अध्यवसाय होता है, तिस
का नाम बुद्धि है, इस का दूसरा नाम महत है। तिस वुद्धि के आठ रूप हैं-धर्म, ज्ञान, वैराग्य, ऐश्वर्य, यह चार तो सात्त्विक रूप हैं, और अधर्म, अज्ञान, अवैराग्य, अनैश्वर्य, यह चार तामस रूप हैं। तिस बुद्धि से अहंकार उत्पन्न होता है, तिस अहंकार से सोला प्रकार का गणपदार्थों का समूह उत्पन्न होता है । सो गण यह है-१. स्पर्शनत्वक् २. रसन-जिह्वा, ३. प्राण-नासिका, ४. चतुः-लोचन, ५. श्रोत्र-श्रवण, इन पांचों को वुद्धींद्रिय कहते हैं । यह पांचों अपने अपने विषय को जानती हैं । अरु यह पांच कर्मेन्द्रिय हैं-१. पायु-गुदा, २. उपस्थ-स्त्री पुरुष का चिन्ह, ३ वाक्, ४. हाथ और ५. पग, हैं,। इन पांचों से १. मलोत्सर्ग, २. संभोग, ३. बोलना ४. पकड़ना, ५. चलना ये पांचों काम होते हैं इस वास्ते इन पांचों को कर्मेन्द्रिय कहते हैं । अरु अग्यारवां मन । यह जो मन है, सो जय बुद्धींद्रियों से मिलता है, तब वुद्धींद्रियरूप हो जाता है, अरु जब कर्मेन्द्रियों से मिलता है, तब कर्मेन्द्रिय रूप हो जाता है । तथा यह मन संकल्प विकल्प रूप है। तथा अहंकार से पांच तन्मात्रा जिनकी सूक्ष्म संज्ञा है, उत्पन्न होतो