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चतुर्थ परिच्छेद
રાટ पिडादिक से भी घट क्यों नहीं हो जाता ? जैसा मृत्पिड में घट के प्रागभाव का अभाव है, वैसा ही सूत्रपिडादिक में भी घट के प्रागभाव का अभाव है । तथा मृतपिड से खरभंग क्यों उत्पन्न नहीं हो जाता ? इस वास्ते यह तुमारा कहना कुछ काम का नहीं है। तथा जो तुमने कहा था, कि जो वस्तु जिस अवसर में जिस से उत्पन्न होवे है, सो कालांतर में भी वही वस्तु तिस अवसर में तिस से ही नियतरूप करके उत्पन्न होती 'हुई दीखती है । सो यह तुमारा कहना ठीक है, क्योंकि कारण सामग्री के अनादि नियमों से कार्य भी तिस अवसर में तिस से ही नियतरूप करके उत्पन्न होता है । जब कि कारणशक्ति के नियम से ही कार्य की उत्पत्ति होती है, तो फिर कौन ऐसा प्रेक्षावान् प्रमाण पंथ का कुशल है, जो प्रमाणबाधित नियति को अंगीकार करे? . अथ पांचमा स्वभाववादी का खण्डन लिखते हैं । स्व
भाववादी ऐसे कहते हैं, कि इस संसार में स्वभाव-वाद सर्व भाव पदार्थ स्वभाव ही से उत्पन्न होते का खण्डन हैं । यह स्वभाववादियों का मत भी
नियतिवाद के खण्डन से ही खण्डित हो गया, क्योंकि जो दूषण नियतिवादी के मत में कहे हैं, वे सर्व दुपण प्रायः यहां भी समान ही हैं । यथा यह जो तुमारा स्वभाव है, सो भावरूप है ? अथवा प्रभावरूप है ? जेकर कहोगे कि भावरूप है, तो क्या एक