________________
२६६
जैनतत्त्वादर्श क्योंकि तिन का वचन प्रमाण से बाधित है । इस वास्ते सुगतादिक सर्वज्ञ नहीं हैं । तिनका वचन जैसे बाधित है, तैसे
आगे लिखेंगे। ___ तथा जो तुमने कहा था कि यदि वर्द्धमान स्वामी सर्वज्ञ भी होवे, तो भो तिस वर्द्धमान स्वामी ही के कहे हुए यह प्राचारांगादि शास्त्र हैं, यह क्योंकर प्रतीत होवे ? सो यह भी तुमारा कहना दूर हो गया, क्योंकि और किसी का ऐसा दृष्टेष्टबाधा रहित वचन है ही नहीं । अरु जो तुमने कहा था कि यह भी तुमारा कहना होवे कि प्राचारांगादि जो शास्त्र हैं, सो वर्द्धमान स्वामी सर्वज्ञ के कहे हुए हैं, तो भी वर्द्धमान स्वामी के उपदेश का यही अर्थ है, अन्य नहीं है, इत्यादि । सो भी अयुक्त है, क्योंकि भगवान् वीतराग है, अरु जो वीतराग होता है, सो किसी को कपटमय उपदेश देकर भुलाता नहीं है, क्योंकि विप्रतारणा का हेतु जो रागादि दोषों का समूह सो भगवान में नहीं है । अरु जो सर्वज्ञ होता है, सो जानता है, कि इस शिष्य ने विपरीत समझा है, अरु इस ने समयक् समझा है । तब जिस ने विपरीत समझा है, तिसको मना कर देते हैं । परन्तु भगवान् ने गौतमादिकों को मने नहीं करा । इस वास्ते गौतमादिकों ने सम्यक ही जाना है। अरु जो कहा था, कि गौतमादि छद्मस्थ हैं, इत्यादि ! सो भी प्रसार है, क्योंकि छद्मस्थ भी उक्त रीति करके भगवान के उपदेश से ही यथार्थ वक्ता