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जैनतत्त्वादर्श अत्यन्त निकृष्ट-सूक्ष्म काल को क्षण कहते हैं, तिसमें जो होवे, सो क्षणिक है । सर्व पदार्थ क्षणमात्र रह कर नाश हो जाते हैं। आत्मा कोई सर्वकाल स्थायी वस्तु नहीं है। पूर्वक्षण के नाश होते ही तत्सदृश उत्तर क्षण उत्पन्न हो जाता है, पूर्वज्ञान से जनित वासना ही उत्तर ज्ञान में शक्ति है । अरु क्षणों की परंपरा करके जो मानसी प्रतीति होवे, तिस का नाम मार्ग है। सो निरोध का कारण जानना । अब चौथा निरोध नाम का तत्त्व लिखते हैं । मोक्ष को निरोध कहते हैं, अर्थात् चित्त की जो सर्वथा क्लेशशून्य अवस्था है, तिस का नाम निरोध है, नामांतर करके उसी को मोक्ष कहते हैं । इन दु खादि चार को आर्यसत्य भी कहते हैं । तथा यह जो चारों तत्त्व ऊपर कहे हैं, सो सौत्रांतिक बौद्धमत की अपेक्षा से हैं। ___ जेकर भेदरहित समुच्चय बौद्धमत की विवक्षा करें, तब तो बौद्धमत में बारां पदार्थ होते हैं-श्रोत्र, चतु, घ्राण, रसन, स्पर्शन, यह पांच इन्द्रिय, अरु इन पांचों इन्द्रियों के पांच विषय, तथा चित्त, और धर्मायतन [धर्म-सुख दुःखादि, उनका आयतन-गृह-शरीर] इन द्वादश तत्त्वों को आयतन कहते हैं । अरु यह बारां आयतन क्षणिक हैं । बौद्ध मत में प्रत्यक्ष अरु अनुमान, यह दो प्रमाण माने हैं। अब नैयायिक दर्शन लिखते हैं । नैयायिक मत का अपर
नाम योगमत भी है। इन नैयायिकों के गुरु नैयायिक मत (साधु) दण्ड रखते हैं, बड़ी कौपीन पहरते का स्वरूप हैं, कांबली ओढ़ते हैं, सिर पर जटा रखते हैं,
शरीर को भस्म लगाते हैं, नीरस पाहार