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चतुर्थ परिच्छेद खाना, अपराह्न में पानी पीना, अर्द्ध रात्रि में द्राक्षाखंड, मिसरी आदि का खाना, मरण के अन्त में मोक्ष, यह बौद्धों का चलन है । तथा मनगमता भोजन करना, मनगमती शय्या, आसन, अरु मनगमता रहने का स्थान, ऐसी अच्छी सामग्री से मुनि अच्छा ध्यान करता है । अरु भिक्षा के समय पात्र में जो कुछ पड़ जावे, सो सर्व शुद्ध मान करके ये मांस भी खा लेते हैं । अरु अपनी ब्रह्मचर्यादि की क्रिया में बहुत दृढ होते हैं । यह उन का आचार है। धर्म, बुद्ध, संघ, इन तीनों को रत्नत्रय कहते हैं । अरु शासन के विघ्नों का नाश करने वाली तारा देवी को मानते हैं। विपश्यादिक सात, इन के बुद्धावतार हैं, जिन की मूर्तियों के कंठ में तीन तोन रेखा का चिह्न होता है। तिन को भगवान मानते हैं, अरु सर्वज्ञ मानते हैं।
ये बुद्ध भगवान् को जितने नामों से कहते हैं, सो नाम लिखते हैं:-१. वुद्ध,२. सुगत, ३ धर्मधातु, ४. त्रिकालवित्, ५. जिन, ६ बोधिसत्त्व, ७. महाबोधी, ८. आर्य, ६ शास्ता, १०. तथागत, ११. पंचज्ञान, १२. पडभिज्ञ, १३. दशाह, १४. दशभूमिग, १५. चतुस्त्रिशज्जातकज्ञ, १६. दशपारमिताधर, १७. द्वादशाक्ष, १८. दशवल, १६. त्रिकाय, २० श्रीधन, २१. अद्वय, २२. समंतभद्र, २३. संगुप्त, २४. दयाकूर्च, २५. विनायक, २६. मारनितू, २७. लोकजित, २८. मुखजित्, २६ धर्मराज, ३०. विज्ञानमात्रक, ३१. महामैत्र, ३२. मुनीन्द्र, यह बत्तीस नाम