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દર
जैनतत्त्वादर्श
उत्पन्न होगी, परन्तु अग्नि से नहीं होती । अरु जो कहा था कि बीज से भी केला उत्पन्न होता है, इत्यादि । सो भी परस्पर विभिन्न होने से उस का भी वही उत्तर है, कि जो 'ऊपर लिख आये हैं। और भी बात है, कि जो केला कन्द • से उत्पन्न होता है, सो भी वास्तव में बीज ही से होता है, इस वास्ते परंपरा करके बीज ही कारण है। ऐसे ही बटादिक भी शाखा के एक देश से उत्पन्न होते ' हुए वास्तव में बीज से ही उत्पन्न होते हैं । शाखा से शाखा होती है, परन्तु उस - शाखा का हेतु शाखा है, ऐसा लोक में व्यवहार नहीं है । क्योंकि वट बीज ही सकल शाखा प्रशाखा समुदायरूप वट के हेतु रूप से लोक में प्रसिद्ध है । ऐसे ही शाखा के
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- एक देश से भी उत्पन्न होता हुआ वट, परमार्थ से मूल, मूल बीज ही से उत्पन्न हुआ किसी जगे में भी कार्य कारण
वटशाखा रूप ही है, वो भी मानना चाहिये । इस वास्ते भाव का व्यभिचार नहीं है ।
अथ अज्ञानवादी के मत का खंडन लिखते हैं । अज्ञानवादी कहते हैं, कि अज्ञान ही श्रेय है, क्योंअज्ञानवादी का कि जब ज्ञान होता है, तब परस्पर में विवाद होता है, और उस के योग से चित्त में कलुपता उत्पन्न हो कर दीर्घतर संसार की वृद्धि होती है, इत्यादि । यह जो अज्ञानवादियों ने कहा है, सो भी मूर्खता का सूचक है, सोई दिखाते हैं । और बात
खण्डन