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चतुर्थ परिच्छेद
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इस वास्ते प्रथम पक्ष श्रेय नहीं है । जेकर दूसरा पक्ष मानोगे, तो वो भी अयुक्त है। क्योंकि समयादिकरूप परिणामी काल विषे काल एक भी है, तो भी विचित्रपना उपलब्ध होता है । तथाहि - एक काल में मूंग पकाते हुए कोई पकता है, कोई नहीं पकता है । तथा समकाल में एक राजा की नौकरी करते हुए एक नौकर को थोड़े ही काल में नौकरी का फल मिल जाता है, अरु दूसरे को बहु कालांतर में भी वैसा फल नहीं मिलता है । तथा समकाल में खेती करते हुए एक जाट के तो बहु धान्य उत्पन्न हो जाते हैं, परन्तु दूसरे को थोड़ा उत्पन्न होता है । तथा समकाल में कौड़ियों को मुठ्ठी भर कर भूमिका में गेरे, तब कितनीक कौड़ियां सीधी पड़ती हैं, धरु कितनीक धी पड़ती हैं । अब जेकर काल ही एकला कारण होवे, तब तो सर्व मूंग एक ही काल में पक जाते, परंतु पकते नहीं हैं । इस वास्ते केवल काल ही जगत् की विचित्रता का कर्त्ता नहीं है, किंतु कालादि सामग्री के मिलने से कर्म कारण है, यह सिद्ध पक्ष है ।
अथ दूसरा ईश्वरवादी अरु तीसरा अद्वैतवादी, ए दोनों मतों का खण्डन द्वितीय परिच्छेद में लिख आये हैं, तहां से जान लेना ।
ara चौथा मत नियतिवादी का है, तिस का खण्डन