________________
૨૨
जेनतत्त्वादर्श . लिखते हैं:-नियतिवादी कहते हैं, कि सर्व नियतिवाद का पदार्थों का कर्ता नियति है । नियति उस खण्डन तत्व को कहते हैं, कि जिस करके सभी पदार्थ
नियत रूप से ही होते हैं । सो भी नियति, ताड्यमान अति जीर्ण वस्त्र की तरे, विचार रूप ताडना को असहमान सैकड़ों टुकड़ों को प्राप्त होती है, सोई कहते हैं । हे नियतिवादो! तेरा जो नियति नाम का तत्त्वांतर है, सो भावरूप है, किंवा प्रभावरूप है ? जेकर कहोगे कि भावरूप है, नो फिर एक रूप है, वा अनेक रूप है ? जेकर कहोगे कि एक रूप है, तो फिर नित्य है, वा अनित्य है ? जेकर कहोगे कि नित्य है, तो किस तरे पदार्थों की उत्पत्त्यादिक में हेतु है ? क्योंकि नित्य जो होता है, सो किसी का भी कारण नहीं होता है । क्योंकि नित्य जो होता है सो सर्व काल में एक रूप होता है । तिस का लक्षण ऐसा है-"अप्रच्युतानुत्पअस्थिरैकस्वभावतया नित्यत्वस्य व्यावर्णनात्"-जो क्षरे नहीं (नष्ट न होवे), उत्पन्न भी न होवे, अरु स्थिर एक स्वभाव करके रहे, सो नित्य । जेकर नियति तिस नित्य रूप
8 "नियति नाम तत्त्वान्तरमस्ति यद्वशादेते सर्वेऽपि भावा नियतेनैव रुपेण प्रादुर्भावमश्नुवते नान्यथा" | [ षड्० स०, श्लो० १ की बृहवृत्ति]
अर्थात् नियति नाम का तत्त्वान्तर है, जिस के बल से सभी पदार्थ निश्चित रूप से ही उत्पन्न होते हैं, अनिश्चित रूप से नहीं ।