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जैनतत्त्वादर्श है। सहचारियों करके व्यपदेश सर्व तार्किकों के मत में प्रसिद्ध है, यथा-"मंचाः क्रोशंतीति"-मंच शब्द करते हैं।
सिद्धान्तीः यह भी मूखों हो का कहना है, क्योंकि इस कहने में इतरेतर दोष का प्रसंग है । सोई कहते हैं, कि सहचारी भरतादिकों को काल के योग से पूर्वापर व्यवहार हुआ अरु कालको पूर्वापर व्यवहार, सहचारी भरतादिकों के योग से हुआ। जब एक सिद्ध नहीं होवेगा, तब दूसरा भी सिद्ध नहीं होगा। उक्तंचः। एकत्वव्यापितायां हि, पूर्वादित्वं कथं भवेत् । सहचारिवशात्तच्चे-दन्योन्याश्रयतागमः ॥ सहचारिणां हि पूर्वत्वं, पूर्वकालसमागमात् । कालस्य पूर्वादित्वं च, सहचार्यवियोगतः ।।
प्रागसिद्धावेकस्य, कथमन्यस्य सिद्धिरिति । ~~~~~~~~~~~~~~~
mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm..www.we. * अर्थात् मच पर बैठे हुए व्यक्ति वोलते हैं ।
+ एक, नित्य और व्यापक पदार्थ में पूर्वापर व्यवहार कैसे हो सकता है ? यदि किसी सहचारी के सयोग से उस में पूर्वापर व्यवहार माना जाय तो अन्योन्याश्रय दोष का प्रसंग होगा । क्योंकि, सहचारी के पूर्वापर व्यवहार में काल की अपेक्षा रहती है, और काल में पूर्वापर व्यवहार के लिये सहचारी का संयोग अपेक्षित है । जव तक प्रथम एक की सिद्धि न हो जावे, तब तक दूसरे की सिद्धि किस प्रकार हो सकती है?