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'जैन तत्त्वादर्श
प्रथम जो कालवादी कहते हैं, कि सर्व वस्तु का काल ही कर्त्ता है, तिस का खंडन लिखते हैं। हे कालवादी ! यह जो काल है सो क्या एकस्वभाव, नित्य, व्यापी है ? किंवा समयादिक रूप करके परिणामी है ? जेकर आदि पक्ष मानोगे तो प्रयुक्त है, क्योंकि ऐसे काल को सिद्ध करने वाला कोई भी प्रमाण नहीं है । जैसा प्राय पक्ष में तूने काल माना है, तैसा काल, प्रत्यक्ष प्रमाण से उपलब्ध नहीं होता है । अरु ऐसे काल का कोई अविनाभावरूप लिंग भी नहीं दीखता, इस वास्ते अनुमान से भी सिद्ध नहीं होता है ।
प्रतिवादी :- अविनाभावलिंग का अभाव कैसे कहते हो ? क्योंकि भरत राम चन्द्रादिकों विषे पूर्वापर व्यवहार दीखता है । सो पूर्वापर व्यवहार का वस्तुरूप मात्र निमित्त नहीं है ? जेकर वस्तुरूप मात्र निमित्त होवे, तदा वर्तमानकाल में वस्तुरूप के विद्यमान होने से तैसे व्यवहार होना चाहिये । तिस वास्ते जिस करके यह भरत रामादिकों विषे पूर्वापर व्यवहार है, सो काल है । तथाहि पूर्वकालयोगी, पूर्व भरत चक्रवर्ती, अपरकालयोगी अपर रामादि ।
सिद्धांती - जेकर भरत रामादिकों विषे पूर्वापर काल के योग से पूर्वापर व्यवहार है, तो कालका पूर्वापर व्यवहार कैसे सिद्ध होगा ?
प्रतिवादी:- काल का जो पूर्वापर व्यवहार है, सो
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कालवाद का
खंडन