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चतुर्थ परिच्छेद
२४७ चढ़ जावेगा, तव तो ज्ञानवान बहुत कर्म वन्ध करके दीर्घतर संसारी हो जावेगा। ऐसे ही असत आदिक शेष विकल्पों का भी अर्थ जान लेना। विनय करके जो प्रवर्त, सो *वैनयिक । इन विनय
वादियों के लिंग अरु शास्त्र नहीं होता है, विनयवादी केवल विनय ही से मोक्ष मानते हैं, तिन का मत विनयवादियों के बत्तीस मत हैं, सो इस तरे
से हैं:-१. सुर, २. राजा, ३. यति, ४. ज्ञाति, ५. स्थविर, ६. अधम, ७. माता, ८. पिता, इन आठों की मन करके, ववन करके, काया करके, अरु देशकाल उचित दान देने से विनय करे । इन चारों से आठ को गुणा करने पर बत्तीस होते हैं ।
ए सब मिल कर तीन सौ त्रेसठ मत हुये। ए सर्व मतधारी तथा इन मतों के प्ररूपणे वाले सर्व कुगुरु हैं, क्योंकि यह सर्व मत मिथ्यादृष्टियों के हैं । यह सब एकांतवादी हैं, अर्थात् स्याद्वादरूप अमृत के स्वाद से रहित हैं । इन का जो अभिमत तत्त्व है, सो प्रमाण करके वाधित है, इन के मतों को पूर्वाचार्योंने अनेक युक्तियों से खडन करा है । सो भव्य जीवों के जानने वास्ते पूर्वाचार्यों की युक्तियां किंचित मात्र नीचे लिखते हैं।
* विनयेन चरन्तीति वैनयिका ।। [ष०स०, श्लो. १ की बृहद्वृत्ति]