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जैनतत्त्वादर्श
आत्मा को नहीं मानते हैं । तिनके चौरासी मत जानने का यह उपाय है-जीव, अजीव, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष, यह सात पदार्थ पत्रादि पर लिखने, पीछे इन जीवादि सातों पदार्थों के हेठ न्यारे न्यारे स्व अरु पर, यह दो विकल्प लिखने, फिर इन दोनों के हेठ न्यारे न्यारे काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव, यदृच्छा, यह छे लिखने । इहां नित्यानित्य यह दो विकल्प इस वास्ते नहीं लिखे हैं, कि जब आत्मादि पदार्थ ही नहीं हैं, तो फिर नित्य अनित्य का संभव कैसे होवे ? तथा जो यह यदृच्छावादी हैं, सो सर्व नास्तिक अक्रियावादी हैं । इस वास्ते क्रियावादी यदृच्छावादी नहीं हैं। इस वास्ते क्रिया वादी के मत में 'यदृच्छा' पद नहीं ग्रहण किया है। इस मत के चौरासी भेद इसी रीति से जानना | विकल्प इस तरे है- "नास्ति जीवः स्वतः कालत इत्येको विकल्पः " जीव अपने स्वरूप करके काल से नहीं है, यह एक विकल्प। ऐसे ही ईश्वरादि से लेकर यदृच्छा पर्यंत सर्व छः विकल्प हुए । इन का अर्थ पूर्ववत् जानना, परन्तु इतना विशेष है, जो यहां यदृच्छावादी अधिक है ।
प्रश्नः - यदृच्छावादियों का क्या मत है ?
उत्तरः- जो पदार्थों का संतान की अपेक्षा नियत कार्यकारणभाव नहीं मानते, किन्तु 'यदृच्छया' जो कुछ होता है, सो सर्व यदृच्छा से होता है, ऐसा मानते हैं, सो यदृच्छावादी हैं। वो ऐसे कहते हैं, कि नियम करके पदार्थों