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चतुर्थ परिच्छेद
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अरु
का आपस में कार्यकारणभाव नहीं है, क्योंकि कार्यकारणभाव प्रमाण से ग्रहण नहीं करा जाता है । तथाहि - मृतक मेंडक से भी मेंडक उत्पन्न होता है, अरु गोवर से भी मेंडक उत्पन्न होता है | अभि से भी अनि उत्पन्न होती है, 1 रण के काष्ट से भी अग्नि उत्पन्न होती है। धूम से भी धूम उत्पन्न होता है, अरु अनि से भी धूम उत्पन्न होता है । कदली के कंद से भी केला उत्पन्न होता है, अरु केले के बीज से भी केला उत्पन्न होता है । वीज से भी वटवृक्ष उत्पन्न होता है, अरु वट वृक्ष की शाखा से भी वटवृक्ष उत्पन्न होता है । इस वास्ते प्रतिनियत कार्यकारणभाव किसी जगे भी नहीं देखने में आता है । इस वास्ते यदृच्छा करके किसी जगे कुछ होता है, ऐसे मानना चाहिये। क्योंकि जब यह जान लिया कि जो कुछ होता है, सो यदृच्छा से होता है, तो फिर काहे को बुद्धिमान कार्यकारणभाव को माने, और आत्मा को क्लेश देवे । यह जैसे 'नास्ति स्वतः' के साथ छः विकल्प करे हैं, ऐसे ही 'नास्ति परतः' के साथ भी छः विकल्प होते हैं । यह जब सर्व विकल्प मिलायें, तव वारां विकल्प होते हैं । इन यारां को जीवादिक सात पदार्थो करके सात गुणा करने पर चौरासी भेद प्रक्रियावादी के होते है ।
अव तीसरा अज्ञानवादी का भेद कहते हैं- भंडा अज्ञानवादी ज्ञान है जिसका सो अज्ञानवादी जानना, अथवा अज्ञान करके जो प्रवर्त्ते, सो प्रज्ञानिक
का मत