________________
का मत
ર૩ર
जैनतत्त्वादर्श अब विकल्प करने कीरीति कहते हैं-"अस्ति जीवः स्वतो
नित्यः कालत इत्येको विकल्पः" । इस विकल्प कालवादी का यह अर्थ है, कि यह आत्मा निश्चय से अपने
रूप करके नित्य है, परन्तु काल से उत्पन्न हुई
है। * कालवादी के मत में यह विकल्प है। कालवादी उस को कहते हैं, कि जो काल हो से जगत् को उत्पत्ति, स्थिति अरु प्रलय मानते हैं। वे कहते हैं कि चंपक, अशोक, सहकार, निब, जंबू, कदंबादि वनस्पति फूलों का लगना, फल का पकना आदि तथा हिमकण संयुक्त शीत का पड़ना, तथा नक्षत्रों का धूमना, गर्म का धारण करना, वर्षा का होना यह सब काल के बिना नहीं होते हैं । एवं षड् ऋतुओं का विभाग, तथा बाल, कुमार, यौवन, और वृद्धादिक अवस्था विशेष, काल के बिना नहीं हो सकती हैं । जो जो प्रतिनियत कालविभागादि हैं, तिन सब का काल ही निर्यता है । जेकर कालको नियंता न मानिये, तो किसी वस्तु की भी ठीक व्यवस्था नहीं होवेगी। क्योंकि जैसे कोई पुरुष मूंग रांधता है, सो भी काल के विना नहीं रांधे जाते हैं । नहीं तो हांडी इंधनादि सामग्री के संयोग से प्रथम समय ही में मूंग रंध जाते । तिस वास्ते जो कुछ करता है, सो काल ही करता है। तथा
* कालवादिनश्च नाम ते मन्तव्या ये कालकृतमेव जगत्सर्वं मन्यन्ते ।
[षड्० स० श्लो० १ की वृहदवृत्ति ]