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चतुर्थ परिच्छेद
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१८० मत
तिन में जो क्रियावादी हैं सो ऐसे कहते हैं - कर्त्ता के विना पुण्यवंधादिलक्षगा क्रिया नहीं होती क्रियावादी के है । तिस वास्ते क्रिया जो है, सो आत्मा के साथ * समवाय संबंध वाली है। यह जो क्रियावादी हैं, सो श्रात्मादिक नव पदार्थों को एकांत अस्तिस्वरूप से मानते हैं । तिस क्रियावादी के एक सौ ग्रस्सी मत इस उपाय करके जान लेने । १. जीव, २. अजीव, ३. आश्रव, ४. बंध, ५. संवर, ६. निर्जरा, ७. पुण्य, ८ अपुण्य ९. मोक्ष, यह नव पदार्थ अनुक्रम करके पट्टी पत्रादिक में लिखने, जीव पदार्थ के हेठ (नीचे) स्वतः अरु परतः यह दो भेद स्थापन करने, इन स्वतः परतः के हेठ न्यारे न्यारे नित्य
?
अरु अनित्य यह दो भेद स्थापन करने अरु नित्य नित्य इन दोनों के हेठ न्यारे न्यारे १. काल, २. ईश्वर, ३. आत्मा, ४. नियति, ५ स्वभाव, यह पांच स्थापन करने, और पीछे से विकल्प कर लेने | यन्त्र स्थापना इस तरे है-
1
D
जीव
स्वतः
अनित्य
नित्य
१. काल २. ईश्वर ३. प्रात्मा ४. नियति
३. आत्मा ४. नियति
५. स्वभाव ५. स्वभाव ५. स्वभाव
* नित्य सम्बन्ध का नाम समवाय है ।
नित्य
१. काल
२ ईश्वर
१. काल
२. ईश्वर
३. आत्मा ४ नियति
परतः
अनित्य
१. काल
२ ईश्वर
३. आत्मा
४.
नियति
५. स्वभाव