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जैनतत्त्वादर्श
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फल को यह जीव भोगता है । इहां बिना इन उक्त निमित्तों के, दूसरा कोई ईश्वर फल दाता नहीं दीखता । ऐसे ही नरक स्वर्गादि परलोक में भी शुभाशुभ कर्म का फल भोगने के असंख्य निमित्त हैं । जेकर कहो कि परस्त्री गमन करने से जो पाप होगा, उस पाप का फल भोगने में क्या निमित्त मिलेगा, जिस के जोग से फल भोगना होगा ? यह बात तो मैं [ ग्रन्थकार ] नहीं जानता, कि इस पुण्य या पाप का फल, इस अमुक निमित्त के मिलने से होगा । क्योंकि मेरे को इतना ज्ञान नहीं कि ठीक ठीक पूरा पूरा निमित्त बता सकूं ? परन्तु इतना कह सकता हूं कि जो जो जीव पुण्य या पाप करते हैं, उन के फल भोगने में कोई न कोई निमित्त - ज़रूर होगा । तथा यह जीव अमुक कर्म का इस तरे से फल भोगेगा, उस को यह निमित्त मिलेगा, अमुक देश में, अमुक काल में मिलेगा, इत्यादि सब कुछ प्रत्यक्षपने - प्रत्यक्ष रूप से तो अर्हत भगवंत - परमेश्वर सर्वज्ञ के ज्ञान में ही भासमान होता है । परन्तु निमित्त के बिना कोई भी फल नहीं भोग सकता । इस वास्ते कर्म फल दाता ईश्वर है, यह कल्पना व्यर्थ है । क्या यह भी कोई बुद्धिमानों का कहना है, कि रोटी पका तो सकता है, परन्तु आप स्खा नहीं सकता । तथा ईश्वर - को फलदाता कल्पना करने से एक और भी कलंक तुम उस पर लगाते हो। कल्पना करो किसी एक पुरुष को किसी दूसरे पुरुष ने खड्ग-नलवार आदि शस्त्र से मार दिया