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द्वितीय परिच्छेद को अनित्य कहोगे तव तो ईश्वर भी अनित्य हो जावेगा, क्योंकि ईश्वरका अपनी शक्तियों से अभेद है । जेकर कहोगे कि शक्तियांईश्वर से भेदरूप हैं, तब भी शक्तियों के नित्य होने से जगत् की रचना और प्रलय नहीं बनेगी । तथा ईश्वर भी अंकिंचित्कर सिद्ध हो जावेगा। क्योंकि जव ईश्वर सर्व शक्तियों से रहित है तब तो वह कुछ भी करने को समर्थ नहीं है, फिर जगत् रचने में क्यों कर समर्थ हो सकेगा ? तथा शक्तियों का उपादान कारण कौन होवेगा? इस से तो ईश्वर की ईश्वरता का ही प्रभाव हो जावेगा। क्योंकि जब ईश्वर में कोई शक्ति ही नहीं, तब ईश्वर काहे का? वो तो प्राकाश के फूल के समान असत हो जाता है, तो फिर इस जगत् का कर्ता किस को मानोगे ?
अव आगे *खरडज्ञानियों का ईश्वरवाद लिखते हैं - प्रतिवादीः-जगत में जितने पदार्थ हैं, उनके विलक्षण
विलक्षण संजोग, आकृति, तथा गुण और खरडनानियों से स्वभाव दीख पड़ते हैं । जेकर इनका तथा ईश्वर चर्चा इन के नियमों का कर्ता कोई न होगा, तो
ये नियम कभी न बनेंगे, क्योंकि जड पदार्थों में तो मिलने वा जुदे होने की यथावत् सामर्थ्य
* यह पंजाबी भाषा का शब्द है । इस का अर्थ अर्द्धविदग्धइधर उधर की दो चार बातें सुन सुना कर अपने आप को पंडित मानने वाला होता है।
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