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जैनतत्त्वादर्श सर्व बोधि का ही माहात्म्य है । इस वास्ते भव्य जाव को बोधि की प्राप्ति में अवश्य यत्न करना चाहिये, क्योंकि कितनेक जीवों ने अनन्त वार द्रव्य चारित्र पाया है, परन्तु बोधिके बिना सर्व निष्फल हुआ।
बारमी धर्म भावना लिखते हैं:-धर्म कथा के कथन करने वाला अर्हन है । जो पुरुष परहित करने में उद्यत है, अरु वीतराग है, वो किसी बात में भी झूठ न बोलेगा । इस वास्ते उसके कहे हुये धर्म में सत्यता है । केवल ज्ञान करके लोकालोक को प्रकाश करने वाला तो एक अर्हत ही हो सकता है, दूसरा नहीं । क्षात्यादि दश प्रकार का धर्म जिनेश्वर देव ने कहा है । उस धर्म करके जीव, संसार समुद्र में डूवता नहीं, किन्तु उस के अाराधन से वह संसार समुद्र को तर जाता है । जो अहंत की वाणी है, सो पूर्वापर अविरुद्ध है, अरु तिन के वचनों में हिंसा का उपदेश नहीं। तथा कुतीर्थियों के जो वचन हैं सो सर्व सद्गति के विरोधी हैं, क्योंकि यज्ञादिकों में पशुवध रूप हिंसा के उपदेश करके कलंकित हैं, पूर्वापर विरोधी हैं, निरर्थक वचन भी बहुत हैं। इस वास्ते कुतीर्थी जिसको धर्म कहते हैं, वो धर्म नहीं किंतु धर्माभास है, इस हेतु से तिन का वचन प्रमाण नहीं हो सकता । अरु जो जो कुतीर्थियों के शास्त्रों में कहीं कहीं दया सत्यादिकों का कथन है,सो भी कहने मात्र हो है,परन्तु तत्त्वमें वो भी कुछ नहीं है, क्योंकि इन का यथार्थ स्वरूप वे जानते