________________
तृतीय परिच्छेद
२१६ चाहिये ? ३. पूर्वकाल में तालोद्घाटिनी, अवस्वापिनी आदिक विद्या के धारक चोर थे, परन्तु इस काल में वो विद्या नहीं है, क्या फिर चोरी करने वालों को चोर न कहना चाहिये ? ४ पूर्वकाल में चौदह पूर्व के पाठी को गीतार्थ कहते थे, तो क्या इस काल में जघन्य आचारप्रकल्प, निशीथ और मध्यम प्राचारप्रकल्प तथा बृहत्कल्प के पढ़े हुये को गीतार्थ न कहना चाहिये ? ५. पूर्वकाल में श्रीआचारांग के शस्त्रप्रज्ञा अध्ययन को पढ़ने के बाद छेदोपस्थापनीय चारित्र में स्थापन करते थे, तो क्या अब दशवैकालिक के षड्जीवनिका अध्ययन के पढ़ने से स्थापन नहीं करना चाहिये ? ६. पूर्व समय में आचारांग के दूसरे लोकविजय नामक अध्ययन के ब्रह्मचर्य नामक पांचवें उद्देश में जो ग्रामगन्धि सूत्र है, उस सूत्र के अनुसार मुनि आहार का ग्रहण करते थे, तो क्या अव दशवैकालिक के पिंडैषणा अध्ययन के अनु सार न करना चाहिये ? ७. प्रथम याचारांग के पीछे उत्तराध्ययन पढ़ते थे, तो क्या अब दशवैकालिक के पीछे जो उत्तराध्ययन पढ़ा जाता है, सो नहीं पढ़ना चाहिये ? ८ पूर्वकाल में मत्तांग श्रादिक दश प्रकार के वृक्ष थे, तो क्या अव अंबादिक को वृक्ष न कहना चाहिये ? ६. प्राचीनकाल में बड़े २ बलवान् वृषभ होते थे; अभी वैसे नहीं हैं, तो क्या अब के वृषभों को वृषभ - बैल नहीं कहना चाहिये ? १०. पूर्व में बहुत गौधों के समूह वाले नन्द