________________
जैन तत्त्वादर्श
२१०
बारां भावना समाप्त हो गई हैं ।
अथ बारां प्रतिमा लिखते हैं: -- एक मास से लेकर सात मास पर्यंत एक एक मास की वृद्धि जान लेनी, ए सात प्रतिमा होती हैं । जैसे प्रथम एक मास की, दूसरी दो मासं की, ऐसे ही एक एक मास की वृद्धि से सात मास पर्यंत सात प्रतिमा होती हैं, और आठमी सात दिन रात की, नवमी सात दिन रात की, दशमी सात दिन रात की, अग्यारमी एक दिन रात की, अरु वारमी प्रतिमा एक रात्रि प्रमाण जाननी ।
अब जो साधु, इन वारां प्रतिमा को अंगीकार कर सकता है, तिस का स्वरूप लिखते हैं, "संहननधृतियुक्तः " तहां जिस का संहनन वज्रऋषभनाराच होवे, सो परिषह सहने में अत्यन्त समर्थ होता है । "धृतियुक्तः " - धृति-चित्त का स्वस्थपना, तिल करके जो युक्त होवे सो धृतियुक्त, वो तो रति, अरति करके पीडित नहीं होता है, "महासत्त्वः" - जो महासास्विक होवे, सो अनुकूल, प्रतिकूल उपसर्ग सहने में विषादको प्राप्त नहीं होता है । "भावितात्मा ” — और जो सद्भावना करके वासित अन्तःकरण होवे, तिस की भावना पांच हैं तिन का विस्तार, व्यवहारभाष्यटीका से जानना । ए भावना कैसे भावे ? सो कहते हैं- " सम्यग्गुरुणाऽनुज्ञात जैसे श्रागम में हैं. तथा जैसे गुरु आचार्य आज्ञा देवे । जेकर गुरु ही प्रतिमा अंगीकार करे. तदा नवीन आचार्य स्थापन