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जैनतत्त्वादर्श वास्ते रोता फिरे, २२. एक अपना भाई बनावे, उस को जब संग्राम में कोई शस्त्र लगे, तब भाई के दुःख से बहुत रोवे, २३. अपने आपको तो अज्ञानी समझे, २४. भाई की चिकित्सा के वास्ते वैद्य को बुलावे, २५. सब कुछ खावे, २६. सब कुछ पोवे, २७. नाचे, २८. कूदे, २६. रोवे, ३०, पीटे, पीछे से ३१. निर्मल, ३२. ज्योतिःस्वरूप, ३३. निरहंकार, ३४. सर्वव्यापक बन बैठे, इत्यादिक पूर्वोक्त शक्तियां ईश्वर में हैं वा नहीं ? जे कर हैं तो इतने पूर्वोक्त सब काम ईश्वर को करने पड़ेंगे। जेकर न करेगा, तब तो ईश्वर की सर्व शक्तियां सफल नहीं होवेंगी । और ईश्वर महा दुःखी हो जावेगा । क्यों कि जिस ने नेत्र तो पाये हैं, अरु देखना उस को मिले नहीं, तो वो कितना दुःखी होता है, यह सब कोई जानता है । जेकर कहोगे कि पूर्वोक्त अयोग्य शक्तियां ईश्वर में नहीं हैं, तब तो सर्व शक्तिमान ईश्वर है, ऐसे कदापि न कहना चाहिये । जेकर कहो कि योग्य शक्तियों की अपेक्षा से हम सर्व शक्तिमान मानते हैं, तब तो जगत् रचने वाली शक्ति को भी अयोग्य ही मानो। यह भी परमात्मा में नहीं है। इस शक्ति की अयोग्यता के विषय ऊपर लिख आये हैं, तथा हे भव्य ! जब ईश्वर ने प्रथम ही सृष्टि रची थी, तब स्त्री पुरुषादि तो थे नहीं, तब माता पिता के बिना ये मनुष्य क्यों कर उत्पन्न हुये होंगे?
प्रतिवादी:-जब ईश्वर ने सृष्टि रची थी, तब ही बहुत से पुरुष, अरु स्त्री, बिना ही माता पिता के रच दिये गये