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तृतीय परिच्छेद
१७७ और साधुनों पर गृहस्थों की अप्रीति हो जावे । इस वास्ते अन्धेरे की जगा से साधु अन्नादिक न लेवे । अव दूसरे महाव्रत को पांच भावना लिखते हैं:हास्यलोभभयक्रोध-प्रत्याख्यानै निरंतरम् । आलोच्य भाषणेनापि, भावयेत्स्नृतं व्रतम् ।।
यो० शा०, प्र० १ श्लो० २७] अर्थ:-१. हास्यप्रत्याख्यान-किसी की हांसीन करे-हांसी का त्याग करे, क्यों कि जो पुरुष किसी को हांसी करेगा, वो अवश्य झूठ बोलेगा। तथा पर की जो, हांसी करनी है, सो किसी वक्त बडे अनर्थ का कारण हो जाती है । श्री हेमचन्द्र सूरिकन रामायण में लिखा है, कि रावण की वहिन शूर्पणखा की श्री रामचन्द्र और लक्ष्मण जी ने हांसी करी, तब शूर्पणखा ने क्रुद्ध हो कर अपने भाई रावण के पास जा कर सीता का वर्णन करा । फिर रावण सीता को हर कर ले गया; तब इन में बड़ा संग्राम हुआ, जिस की आज ताई लोक नकल बनाते हैं। विचार किया जाये तो इस सारी रामायण का निमित्त शूर्पणखा की हांसी है । २. लोभप्रत्याख्यान-लोभ का त्याग करना, क्योंकि जो लोभी होगा सो अवश्य अपने लोभ के वास्ते झूठ बोलेगा, यह वात सर्व लोगों में प्रसिद्ध ही है । ३. भयप्रत्याख्यान-भय न करना, क्योंकि भयवंत