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जैनतत्त्वादर्श भाव को नित्य माने है, वो तो अपनी जीर्ण पत्रों की झोंपड़ो के भंग होने से रात दिन रुदन करता है । तिस वास्ते तृष्णा का नाश करके ममत्व रहित शुद्ध बुद्धि वाला जीव अनित्य भावना को भावे ।
दूसरी अशरगाभावना का स्वरूप कहते हैं:-पिता, माता, पुत्र, भार्या प्रमुख के देखते हुए आधि व्याधि की समूह रूप शृङ्खला में बन्धे हुए, तथा रुदन करते हुए जीव को, कर्म रूप योद्धा यम-काल के मुख में जो फैक देते हैं, सो बड़ा दुःख है । जो लोक शरण रहित अनाथ हैं, वे क्या करेंगे? तथा जो नाना प्रकार के शास्त्रों को जानते हैं, नाना प्रकार के मंत्र यन्त्रों को क्रिया को जानते हैं, ज्योतिष विद्या को जानते हैं, तथा नाना प्रकार की औषधि, रसायन प्रमुख वैद्यक क्रियाओंमें कुशल हैं। इन सम्पूर्ण विद्वानों कीउक्त क्रियायें काल के आगे कुछ भी करने को समर्थ नहीं हैं। तथा नाना प्रकार के शास्त्रों वाले, उद्भट योद्धामों की सेना करके परिवेष्टित भी हैं, नाना प्रकार के मदझर हाथियों की बाड़ भी है, ऐसे इन्द्र, वासुदेव, चक्रवर्ती सरीखे बलवान् भी काल के घर में बैंचे हुए चले जाते हैं । बड़ा दुःख है, कि जो प्राणियों को कोई भी त्राण नहीं। जथा जो मेरु को दण्ड अरु पृथ्वी को छत्र करने में समर्थ थे, अरु थोड़ा भी जिन को क्लेश नहीं था, ऐसे अनंतबली तीर्थकर भी लोकों को काल से बचाने को समर्थ नहीं, तो फिर दूसरा कौन समर्थ है ?