________________
१७८
जैनतत्त्वादर्श पुरुष भी झूठ बोल देता है। ४. क्रोध प्रत्याख्यान-क्रोध का त्याग करना, क्योंकि जो पुरुष क्रोध के वश होगा, वो दूसरों के हुए अनहुए दुषण ज़रूर बोलेगा । ५. विचार पूर्वक भाषण [अनुवीचि भाषण]-प्रथम मन में विचार कर लेवे, अरु पीछे से बोले; क्यों कि जो विचार करे विना बोलेगा वो अवश्य झूठ बोलेगा। अब तीसरे महाव्रत की पांच भावना लिखते हैं:
आलोच्यावग्रहयाच्या-भीक्ष्णावग्रहयाचनम् । एतावन्मात्रमेवैत-दित्यवग्रहधारणम् ॥ समानधार्मिकेभ्यश्च, तथावग्रहयाचनम् । अनुज्ञापितपानाना-सनमस्तेयभावना ।। -
यो० शा०, प्र० १ श्लो० २८,२६] अर्थः-१. जिस मकान में साधु ने ठहरना होवे, प्रथम उस मकान के स्वामी की आज्ञा लेनी अर्थात् घर का स्वामी यही है, ऐसा जान कर आज्ञा लेनी । जेकर स्वामी की आज्ञा के विना रहे, तो चोरी का दोप लगे अरु कदाचित् घर का स्वामी क्रोध करके साधु को वहां से निकाल देवे, तो साधु रात्रि में कहां जावे ? इत्यादि अनेक क्लेश उत्पन्न हो जाते हैं, इस वास्ते मकान के स्वामी की आज्ञा लेकर उस के मकान में रहना । २. उपाश्रय के स्वामी की वार वार प्राज्ञा लेनी, क्योंकि कदाचित् कोई साधु रोगी