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द्वितीय परिच्छेद
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उत्तर दिया | क्या तुमारे इस उत्तर को सुन कर विद्वान् लोग तुमारा उपहास न करेंगे ? ईश्वर जे कर सृष्टि को रचे, तो उस की ईश्वरता ही नए हो जावे, यह वृत्तांत ऊपर अच्छी तरह से लिख आये हैं ।
प्रतिवादी: -- ईश्वर की जो सर्व शक्तियां हैं, सो सर्व अपना अपना कार्य करती हैं, जैसे आंख देखने का काम करती है, कान सुनने का काम करते हैं, तैसे ही जो ईश्वर में रचनाशक्ति है, सो रचने से ही सफल होती है, इस वास्ते जगत् रचता है । सिद्धांती - जब तुमने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् माना तब तो ईश्वर की सर्व शक्तियां सफल होनी चाहिये, यथा ईश्वर - १. एक सुन्दर पुरुष का रूप रच कर सर्व जगत् की सुन्दर सुन्दर स्त्रियों से भोग करे, २. चोर वन कर चोरी करे, ३. विश्वास घातीपना करे, ४. जीवहत्या करे, ५. झूठ बोले, ६. अन्याय करे, ७. अवतार लेकर गोपियों से कल्लोल करे, ८. कुब्जा से भोग करे, ६. दूसरे की मांग को भगा कर ले जावे, १०. सिर पर जटा रक्खे ११. तीन आंख बनावे, १२. वैल के ऊपर चढ़े, १३. तन में विभूति लगावे, १४ स्त्री को वामांग में रक्खे, १५. किसी मुनि के श्रागे नंगा हो कर नाचे, १६. किसी को वर देवे, १७. किसी को शाप देवे, इसी तरें १८. चार मुख बना के एक स्त्री रक्खे, १६. अपनी पुत्री से भोग करे, २०. संग्राम करे, २१. स्त्री को कोई चोर चुरा ले जावे, तो पीछे उस स्त्री के