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जैनतत्त्वादर्श
पूर्वोक्त पांचों निमित्तों से वर्षा के द्वारा अनेक प्रकार, के are तृणादि, अनेक प्रकार की वनस्पति, तथा अनेक प्रकारके कीट पतंग प्रमुख जीव उत्पन्न हो जाते हैं । परन्तु पांचों निमित्तों के विना किसी वस्तु को बनाता हुआ अन्य कोई ईश्वर नहीं दिखाई देता; ज़रा पक्षपात छोड़ और विचार, कर के देखो कि, ईश्वर जगत् का कर्त्ता किस तरें से हो सकता है ? क्योंकि पृथ्वी, आकाश, चन्द्र, सूर्य, इत्यादिक त द्रव्यार्थिक नय के मत से अनादि हैं, फिर इन के, वास्ते, पूछना कि यह किस ने बनाये हैं ? कितने आश्चर्य की बात है ? और यदि ऐसा ही है, तो फिर हम पूछते हैं, कि ईश्वर, किस ने बनाया ? जेकर कहो कि ईश्वर तो किसी ने नहीं बनाया, वो तो अनादि से ही बना बनाया है। तो फिर पृथ्वी प्रमुख कितनेक पदार्थ भी अनादि से ही बने मानने में क्यों लज्जा करते हो ?
बनाये हैं, ऐसे
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प्रतिवादी :- जो स्वभाव से जगत् की उत्पत्ति मानते हैं, उनके मत में यह दोष आयेंगे। जेकर यह पृथिवी स्वभाव से ही होती, तो इस का कर्त्ता और नियंता कोई न होता,, तथा पृथिवी से भिन्न दस कोस पर अन्तरिक्ष में दूसरी पृथिवी भी आप से आप बन जाती, परन्तु आज तक नहीं. बनीं। इससे जाना जाता है, कि ईश्वर ही पृथिवी आदि का कर्ता है !
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सिद्धान्ती. - तुम को कुछ विचार है, वा नहीं ? जे कर
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