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जैनतत्त्वादर्श
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तथा जेकर ईश्वर में एकान्त नित्य जगत् रचने का स्वभाव है, तब तो प्रलय- कभी भी नहीं होगी, क्योंकि ईश्वर में प्रलय करने का स्वभाव नहीं है । जेकर कहोगे कि ईश्वर में रचने की अरु प्रलय करने की दोनों ही शक्तियां नित्य विद्यमान हैं, तब तो न जगत् रचा जायगा अरु न प्रलय ही होगी, क्योंकि परस्पर विरुद्ध 'दो शक्तियां एक जगे एक काल में कदापि नहीं रह सकतीं। जिस काल में रचने वाली शक्ति रचेगी, तिसी काल में प्रलय करने वाली शक्ति प्रलय करेगी, अरु जिस काल में प्रलय करने वाली शक्ति प्रलय करेगी, तिसी काल में रचने वाली शक्ति रचना करेगी । इस प्रकार जब शक्तियों का परस्पर विरोध होगा, तब न जगत् रचा जावेगा, न प्रलय किया जावेगा। फिर तो हमारा ही मत सिद्ध होगा, अर्थात् न किसी ने यह जगत् रचा है, अरु न इस की कदे प्रलय होती है । तातें यह जगत अनादि, अनंत स्पष्टपने सिद्ध हो गया । जेकर कहो कि ईश्वर में दोनों ही शक्तियां नहीं हैं, तो फिर जगत् की रचना और प्रलय कैसे ? तब भी वो अनादि, अनंत ही सिद्ध हुआ । जेकर कहोगे कि ईश्वर जब चाहता है, तब रचने की इच्छा कर लेता है, अरु जब प्रलय करता है, तब प्रलय की इच्छा कर लेता है, इस में क्या दूषण है ? ऐसा कहने से तो ईश्वरकी शक्तियां अनित्य होजावेंगी। भले अनित्य हो जावें, इसमें हमारी क्या हानि है ? जेकर ईश्वर की शक्तियों