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जैन तत्त्वादर्श
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देहधारी है । जेकर देहधारी ईश्वर न होवे, तो फिर पांच मुख कैसे होवें ? इस प्रमाण से ईश्वर शरीर रहित सिद्ध नहीं होता। अब जेकर शरीर धारी ईश्वर व्यापक होवे तब तो इस लोक में अकेला ईश्वर ही व्यापक हो कर रहेगा। दूसरे पदार्थों को रहने के वास्ते कोई दूसरा ही लोक चाहिये । जेकर कहोगे कि ज्ञान स्वरूप करके ईश्वर सर्व व्यापक है, तब तो सिद्धसाधन ही है । क्योंकि हम भी तो ज्ञानस्वरूप करके भगवान् को सर्वव्यापी मानते हैं । अरु ऐसा मानने में तुमारे वेद से विरोध होवे है । क्योंकि वेदों में शरीर करके सर्व व्यापक कहा है । यथा
* विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतो बाहुरुत विश्वतस्पादित्यादि । [ऋग०८-३-१६-३]
इस श्रुति से सिद्ध है, कि ईश्वर शरीर करके सर्व व्यापक है । फिर तो पूर्वीक ही दूषण आवेगा । इस वास्ते ईश्वर व्यापक नहीं ।
तथा तुम कहते हो कि ईश्वर सर्वश है; परन्तु तुमारा ईश्वर सर्वज्ञ भी नहीं। क्यों कि हम जो सृष्टि कर्त्ता ईश्वर का खण्डन करने वाले हैं, सो उस से विपरीत चलते हैं, फिर हम को
उस ने क्यों रचा ? जेकर कहोगे कि जन्मां
* वह ब्रह्म सब का चक्षु है, सब का मुख है, सब का बाहु और का पैर है
सर्वज्ञता का
प्रतिवाद