________________
द्वितीय परिच्छेद *अपाणिपादो जवनो ग्रहीता, पश्यत्यचक्षुः श्रृणोत्यकर्णः । स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता, तमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम् ॥
श्वेता० उ०,३-१८] इस मन्त्र में कहा है कि ईश्वर को जानने वाला कोई भी नहीं है।
पूर्वपक्षः-विना कर्त्ता के जगत् कैसे हो गया ? इस अनुमान प्रमाण से ईश्वर सृष्टि का कर्त्ता सिद्ध होता है। सो तुम क्यों नहीं मानते ?
उत्तरपक्षः-इस तुमारे अनुमान को दूसरे ईश्वर पन में खण्डन करेंगे। यद्यपि उक्त प्रकार से सृष्टि से पहिले उपादानादि सामग्री रहित, केवल एक परमेश्वर नहीं सिद्ध हुआ, तो भी हम आगे चलते हैं । कि जव ईश्वर ने यह जीव रचे थे तव -निर्मल रचे थे? २-पुण्य वाले रचे थे ? ३-पाप वाले रचे थे ? ४-मिश्रित पुण्य पाप-अौं अर्द्ध पुण्य पाप वाले रचे थे ? ५-पुण्य थोड़ा पाप अधिक वाले रचे थे ? ___वह-परमात्मा हाथ और पाओं के विना ग्रहण करता और चलता है, आंख के विना देखता है, कान के विना सुनता है। जो कुछ जानने योग्य है वह सब जानता है और उसको जानने वाला कोई नही है । उसे प्रथम-आद्य और महान्-श्रेष्ठ पुरुष कहते हैं।