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जैनतत्त्वादर्श १-किवा पुण्य अधिक पाप थोडे वाले रचे थे ? जे कर प्रथम पक्ष ग्रहण करोगे तो जगत् में सर्व जीव निर्मल ही चाहिये, फिर वेदादि शास्त्रों द्वारा उनको उपदेश करना वृथा है , अरु वेदादि शास्त्रों का कर्ता भी मूढ सिद्ध हो जावेगा, क्योंकि जब आगे ही जीव निर्मल हैं तो उनके वास्ते शास्त्र काहे को रचने थे। क्योंकि जो वस्त्र निर्मल होता है तिसको कोई भी बुद्धिमान धोता नहीं, जे कर धोवे तो महामूढ है । इस कारण से जो निर्मल जीवों के उपदेश निमित्त शास्त्र रचे सो भी भूढ है। __ पूर्वपक्षः-ईश्वर ने तो जीवों को शुद्ध निर्मल एतावता अच्छा ही बनाया था, परन्तु जीवों ने अपनी इच्छा से अच्छा वा बुरा-भूण्डा काम कर लिया है । इस में ईश्वर का कुछ दोष नहीं?
उत्तर पक्ष-जब ईश्वर ने जीवों में अच्छा वा बुरा काम करने की शक्ति नहीं रची, तो फिर जीवों में पुण्य वा पाप करने की शक्ति कहां से आई ?
पूर्वपक्षः-सर्व शक्तियां तो जीव में ईश्वर ने ही रची हैं। परन्तु जीवों को बुरा काम करने में प्रवृत्त नहीं करता। बुरे कामों में जीव प्रापही प्रवृत्त हो जाते हैं । जैसे किसी गृहस्थ ने अपने प्रिय पुत्र बालक को खेलने वास्ते एक खिलौना दिया है, परन्तु जो वो बालक उस खिलौने से अपनी प्रांख निकाल लेवे तो माता पिता का क्या दूषण है ? तैसे ही