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द्वितीय परिच्छेद मे पहिले अपर सृष्टि रचके क्यों नहीं अपना दुःख दूर करा'
पूर्वपक्षः-ईश्वर ने जो सृष्टि रची है सो जीवों को धर्म के द्वारा अनंत सुख हो इस परोपकार के वास्ते ईश्वर ने सृष्टि रची है।
उत्तरपक्षः-धर्म कराके जीवों को सुख देना यह तो तुमारे कहने मे परोपकार हुआ परन्तु जो पाप करके नरक गये उनके उपरि क्या उपकार करा ? उनको दुःखी करने से क्या ईश्वर परोपकारी हो सकता है ?
पूर्वपक्षः-उनको नरक मे निकाल के फिर स्वर्ग में स्थापन करेगा।
उत्तरपक्षः-तो फिर उसने प्रथम ही नरक में क्यों जाने दिये
पूर्वपक्ष.-ईश्वर ही सब कुछ पुण्य पापादि कराता है, जीव के अधीनं कुछ भी नहीं। ईश्वर जो चाहता है सो कराता है, जैसे काठ की पुतली को बाज़ीगर जैसे चाहता है, तैसे नचाता है, पुतली के कुछ अधीन नहीं।
उत्तरपक्षः-जब जीव के कुछ अधीन नहीं, तो जीव को अच्छे बुरे का फल भी नहीं होना चाहिये। क्योंकि जो कोई सरदार किसी नौकर को कहे, कि तुम यह काम करो, फिर नौकर सरदार के कहने से वो काम करे, अरु वो काम अच्छा है वा बुरा है तो क्या फिर वो सरदार उस नौकर को कुछ दंड आदि दे सकता है ? कुछ भी नहीं दे सकता। ऐसे