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जैनतत्त्वादर्श सिद्धान्तो:-तब तो ईश्वर भी किसी दूसरे ईश्वर की प्रेरणा ही से प्रवृत्त होवेगा और वो दूसरा किसी तीसरे ईश्वर की प्रेरणा से प्रवृत्त होगा, तब तो अनवस्था दूषण हो जायगा। __ प्रतिवादी-बढ़ई प्रमुख सर्व जीव तो अज्ञानी हैं, इस वास्ते ईश्वर की प्रेरणा ही से अपने अपने काम में प्रवृत्त होते हैं, परन्तु ईश्वर तो सर्व पदार्थों का ज्ञाता है, उस को किसी दूसरे प्रेरक की ज़रूरत नहीं । इस वास्ते अनवस्था दूषण नहीं है।
सिद्धान्ती-यह भी तुमारा कहना असत् है, क्योंकि इस तुमारे कहने में इतरेतराश्रयरूप दूषण प्राता हैप्रथम ईश्वर सर्व पदार्थ के यथावस्थित स्वरूप का ज्ञाता सिद्ध हो जावे, तब "अन्य की प्रेरणा के बिना ईश्वर
आप ही प्रवृत्त होता है"-ऐसा सिद्ध होवे, और जब अन्य की प्रेरणा के बिना ईश्वर पाप ही प्रवृत्त होता है-ऐसे सिद्ध हो जावे तब तो ईश्वर सर्व पदार्थ के यथावस्थित स्वरूप का जानने वाला सर्वज्ञ सिद्ध होवे । जब तक दोनों में से एक की सिद्धि न हो जावे, तब तक दूसरे की सिद्धि कभी न होगी। तथा हे ईश्वरवादी! हम तुम को पूछते हैं कि जेकर ईश्वर सर्वज्ञ अरु वीतराग है, तो काहे को और जीवों को असत् व्यवहार में प्रवर्तीवे है ? क्योंकि जो विवेकी होते हैं वे मध्यस्थ ही होते हैं। तथा